सोमवार, 17 अक्टूबर 2016

तुम्हारे लिए


रातों की स्याही मेरे नाम लिख दो
सारे सितारे तुम्हारे लिए हैं।
तन-मन भिगो दें घुले साँस में जो
खुशबू के धारे तुम्हारे लिए हैं।

मैं बांध सकता समय की नदी को
पल के लिए रोक सकता सदी को
यह कालजेता पुरुष भी युगों से
बांहें पसारे तुम्हारे लिए हैं ।।1।।

बियाबान हों या गरजते समन्दर
चलें आंधियां या भयंकर बवंडर
मुझे चक्रवातों की धारा में बहना
निरापद किनारे तुम्हारे लिए हैं ।।2।।

धरा सेज मेरी, गगन छत्र मेरा
महाशून्य में राज्य सर्वत्र मेरा
देखे नहीं स्वप्न अमरावती के
सपने संवारे तुम्हारे लिए हैं ।।3।।

क्षितिज से क्षितिज तक स्वयं मैं प्रकाशित
दिगन्तों में मेरा अमर स्वर निनादित
सत्यं शिवं सुन्दरं के खजाने
धरा पर उतारे तुम्हारे लिए हैं ।।4।।

रातों की स्याही मेरे नाम कर दो,
सारे सितारे तुम्हारे लिए है।
तन-मन भिगो दे, घुले साँस में जो,

खुशबू के धारे तुम्हारे लिए हैं ।।5।।

___-__-__ शिवपूजन 'यायावर'

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