शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2016

सुलगते सवाल


दर्दनाक हादसे के बाद कई अनकहे
सुलगते सवाल हमें सालते रहे।
और हम पड़े पड़े दर्द के गुबार को,
बेशुमार आँसुओं में ढालते रहे।।

नफरत की जमीन कौन यहाँ बो गया,
अमन का फरिश्ता भी तार तार हो गया।
आग्रहों को दायरे घेरते रहे हमें,
और हम भड़ास ही निकालते रहे ।।1।।

बेगुनाह बस्तियाँ खाक में मिला दिया,
हमने अपने हाथ से आशियां जला दिया।
जुर्म के खिलाफ कौन क्या बयान दे,
सब गुनाह पर नकाब डालते रहे ।।2।।

सरहदों की चौकसी नीलाम हो गई,
छलकता रहा शबाब और शाम हो गई।
हुक्मरान देश के कौड़ियों में बिक गये,
हम उन्हीं की थैलियां संभालते रहे ।।3।।

आंकड़े विकास के फाइलों में भर गये,
खामियों की बात से साफ हम मुकर गये।
नग्न सत्य झेलते यह सदी गुजर गई,
हम हकीकतों को मगर टालते रहे ।।4।।

नारों के जंगल में भटक गईं पीढ़ियाँ,
स्वप्न लांघते रहे संसद की सीढ़ियाँ।
हम प्रचार साधनों की आड़ में खड़े खड़े,
गलतफहमियाँ तमाम पालते रहे ।।5।।

हम विकल्प बन रहे हम विकल्प बन गए,
एक दूसरे को देख आसमां में तन गए।
बेशर्म आइना घूरता रहा हमें,
और हम टोपियाँ उछालते रहे ।।6।।

रिश्तों के समीकरण धुल फांकते रहे,
बुद्धि के दिवालिये डींग हांकते रहे।
पीड़ा के राग में स्वर नहीं मिला सके,

भाषणों से खून को उबालते रहे ।।7।।

___-__-__ शिवपूजन 'यायावर'

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