सोमवार, 17 अक्टूबर 2016

दिल की किताब


पाक़ साफ दिल की ये किताब कीजिये,
याद प्यार का सबक जनाब कीजिए।

देह गल गई मगर उगल रहे ज़हर,
अजगरों के चूर चूर ख्वाब कीजिये।

राम के विरुद्घ छद्मवेश में खड़े,
रावणों को आज बेनकाब कीजिये।

अर्धसत्य को कभी न लक्ष्य मिल सके,
यक्षप्रश्न पूछ लाजवाब कीजिये।

दागदार हस्तियाँ बुला बुला यहाँ,
महफिलों की शाम मत खराब कीजिये।

चाँदनी को सौंपकर घटा के हाथ में,
चाँद का तबाह क्यूँ शबाब कीजिये।

खार तो हजार बार आपने दिये,
एक बार पेश तो गुलाब कीजिये।

जिन्दगी संभल गई अगर ढ़लान पे,

तो तमाम उम्र का हिसाब कीजिये।

___-__-__ शिवपूजन 'यायावर'

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