घवल वसन तन सोहे, शारदे।
निर्मल जन मन मोहे, शारदे।
हे कमलाक्षी, वीणा वादिनि!
विद्या-वारिधि- वीचि- विहारिणि!
मूर्तिमयी मेधा- मन्दाकिनि।
ऊर्मिल गति दे दो हे! शारदे।।1।।
आलोकित कर दो जीवन- पथ
रत्न खोज लें, सागर को मथ
बढ़े निरंतर विजय- कीर्ति- रथ।
दिव्य शक्ति दे दो हे! शारदे! ।।2।।
देवगिरा, कल्याणी संस्कृत,
तू ही उर वीणा में झंकृत
तुम से भाषा-भाव अलंकृत।
ज्ञान-कोष दे दो हे! शारदे ।।3।।
घवल वसन तन सोहे, शारदे!
निर्मल जन मन मोहे, शारदे!
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शिवपूजन 'यायावर'

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