रक्त रंजित हाथ चेहरा स्याह लेकर,
अलविदा होंगे पतन की थाह लेकर।
अस्थियों पे हो रही तामीर जिसकी,
क्या मिलेगा वो इबादत गाह लेकर।
कट गये बीहड़ अकेले जिन्दगी के,
क्या करेंगे अब कोई हमराह लेकर।
नीड़ अपना कातिलों ने रौंद डाला,
जी रहे हैं ठौर और पनाह लेकर।
आ गए दंगा नियंत्रण के प्रभारी,
साथ में हुक्काम लापरवाह लेकर।
आपने नज़रें मिलाईं, कम नहीं ये,
क्या करेंगे अब कोई तनख्वाह लेकर।
विजय-शिखरों को वही तो चुमते हैं,
जो निकलते हैं विजय की चाह लेकर।।
___-__-__
शिवपूजन 'यायावर'

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें