शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2016

बंजारे


पीड़ाओं से परिचय कितना,
रिश्ते कितने गहरे हैं।
क्या समझेंगे महलों वाले
जो पुश्तैनी बहरे हैं।।

भूखे नंगे हाथों ने ही
महलों का इतिहास रचा।
पतझड़ की नंगी छाती पर
घरती ने मघुमास रचा।
हम माटी को कंचन कर दें
अपने स्पर्श सुनहरे हैं ।।1।।

महलों के धुंधले साये में
बंजारों की शाम हुई।
यायावर सपनों की खातिर,
हर बस्ती बदनाम हुई।
पागल मन से भटके राही
इस बस्ती में ठहरे हैं ।।2।।

सूरज को मिल रही चुनौती,
जुगनू के तो पर निकले।
धुआं धुआं हो गए उजाले,
तम के भी तेवर बदले।
कारे अंधियारे के परचम

ज्योति शिखर पर फरहें हैं ।।3।।

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शिवपूजन 'यायावर'

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